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वन की प्रत्यंचा में धर्म (कर्म) एक महत्वपूर्ण धागा जिस से वर्तमान,भूत, भविष्य, के फल निर्माण किये जाते है धर्म एक ऐसी नीति है जिसके सहारे हम जुड़े हुवे है।परन्तु प्रेम एक ऐसी दिव्य नीति है जिस पर किसी धर्म का बंधन नहीं प्रेम नि:चल निःस्वार्थ प्रेम सब धर्मों के ऊपर हैं वही प्रेम अपनी प्रकाष्ठा में जब अनन्य भक्ति का रूप धारण कर लेता हैं तो स्वयं भगवान भी विधाता के बनाये विधान से सृष्टि के बनाये नियम तोड़ कर भक्त के आगे हाथ जोड़ कर खड़े रह जाते है और अपने भक्त की आन रखने पर विवश हो जाते हैं।प्रेम के भी अपने विधान है उसके भी अपने नियम हैं प्रेम की असली शक्ति उसके नि:स्वर्थ होने में है जब वो प्रेम नि:स्वार्थ होता है तो वो कुछ नहीं मांगता अपने प्रेमी को कुछ देना चाहता है तो उसका सूख ओर उसकी प्रशनता के लिए वो सब कुछ लुटा देना चाहता है इसी प्रेम करने वाले से पूछा जाए कि क्या दे सकते हो ?तो उत्तर होता है प्राणों से बड़ी कोई वस्तु नहीं ओर में प्राण दे सकता हूँ प्राण देना बहुत सरल काम है किंतु अपने प्रेमी के लिए जीना कठिन होता है यदि तुम सच्चे भावनामय प्रेम के भक्त हो तो पुछो अपने भगवान से की उनकी प्रशन्ता किसमे हैं और जो वह कहें उसको ही प्रेम की पूजा समाझ कर करो।
आपने मेरी आँखों से स्वार्थ के सब पर्दे हटा दिये हैं।अब तक में अपने कर्तव्य और अपनी कीर्ति की बात सोचता था और उसे प्रेम समझता था फिर भी आपने मुझे जिता कर भक्ति का दान दिया हैं मैं जन्मों जन्मों तक आपके इस उपकार का ऋणी रहूँगा प्रेम का कोई मोल नहीं होता मोह नहीं होता प्रेम बड़ा निर्मोही है प्रेम किया तो बिन मोल बिक जाए।
वास्तविक जीवन में ज्ञान की प्रेरणा एक प्रेम का भाग हैं जिसके आधार पर मनुष्य अपने स्वार्थ से परे जाकर एक कुशल जीवन का आभाश करता है और उसी के सहारे प्रेम को अनभिज्ञ बना देता है ऐसा कई युगों से होता आया है जैसे रामायण काल में राम,लक्ष्मण, भारत, तो परीक्षा में बँधी सीता राम और उनकी अपने राज्य की प्रजा के प्रति अनूपम स्नेह ने ज्ञान की परिभाषा ही बदल दी हो इसका एक हिस्सा आज हम अपने जीवन में भी प्रयोग करते है और बोलते है आज बहुत दिनों बाद भरत मिलाप हूवा तो कहीं विशेष स्तरों पर पत्नी और पति के प्रेम में राम और सीता का गुणगान होता आया हैं।महाभारत काल में संकेतों के द्वारा बताए गए द्रोपदी का अपने निर्णय और कृष्ण प्रेम उसीसे अर्जुन का अपने कर्म के प्रति प्रेम जिसने अपार ज्ञान की चेतना दी इस भारतवर्ष को और उसी में छुपा गीता का अदभुत ज्ञान जिसमें श्रद्धा, प्रेम व कर्म के जुड़ाव की विस्तृत व्याख्या की है। जो इस श्लोक में दिखाई देती है-
श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥
आस्था और श्रद्धा के भाव से सत्य ज्ञान की खोज में और उससे पाने के लिए कोई बौद्ध तो कोई महावीर बन गया सबने अपने अंतिम निर्णय में प्रेम के अभूत तत्व को समाहित किया और उसकी श्रेष्ठता वर्तमान में भी मनुष्य अपने जीवन को सार्थक बनाने में उपयोग करते है।
"खंड 2"
इतिहास और भूगोल ने भी प्रेम की विचित्र प्रमाणों के माध्यम से जीवन को ज्ञानमयी सागर का रूप दिया है जिस से मनुष्य के जीवन में निरन्तर बदलाव आए हैं कई राज्यों ने प्रेम ओर श्रद्धा की ख़ोज में अपने भगवान के प्रति धन भूमि आदि का दान किया तथावत मंदिर का निर्माण भी करवाया जिस से मंदिर गहरी आस्था का स्थान बन गए और उसके स्थान पर भव्य शहरों का निर्माण हो गया और वह शहर गहरे प्रेम के साथ ज्ञान के अथक भण्डार बन गए और कही खोये हुवे भावना और भक्ति मध्यम के साधन जाग उठे जिससे मनुष्य जीवन में एक अद्भूत ज्योति का कार्य किया जिस से साधारण मनुष्यों ने प्रेम का उपयोग जीवन में ज्ञान और बदलाव को ओर उत्साह से इस तरह स्वीकार किया की उसी जगह भव्य नगरों का निर्माण हो गया महाबलेश्वरम, तेरुपाली, विजयनगर, बोद्ध गुफाएं,मठ आदि। o
इसी ने शासको के जीवन और राज्य में बदलाव की सीमा का पुरज़ोर से सहयोग किया जिसमें कला संस्कृति और व्यपार को बढ़ावा मिला तो कई दूर दराज से यात्रियों को आकर्षित किया इस जिसमें राजराजेश्वर,कृष्णदेव रॉय के शासन काल में आये ह्वेनसांग,फ़ाह्यान इत्यादि से पता चलता हैं।
तो कभी ज्ञान ने आभार प्रेम से चाणक्य जैसे नीतिशास्त्र बना दिए तो कहीं नये राज्य और राजवंश की स्थापना करवा दी इसकी झलक अर्थशास्त्र में मिलती है कभी अदभुत प्रेम ने राजा और राज्य की परिसीमा बदल जैसा महान शासक सम्राट अशोक के जीवन और उनके द्वारा बनाये धम में दिखाई देता हैं।
जीवन के विकास में प्रेम का अदभुत योगदान रहा कभी इस प्रेम ने एक मनुष्य को दो भागों में विभाजित किया तो कभी एक मनुष्य को विशव श्रेष्ठ बना दिया उसी में समाय प्रकृति और भावनाओं के जुड़ाव ने साहित्य बना डाला जो कभी कबीर, कभी विवेकानंद, तो कभी कालिदास, के रूप में सामने आया जिसको आज भी अभिज्ञान शकुंतला, कबीर वाणी,वेदों की व्यख्यान, किया।
कबीर जी के इस दोहे में प्रेम से जागे ज्ञान का एक वीकृत अंश है जिसमें वह प्रेम के तत्वावधान का विकास एक श्रेष्ठ भाव के साथ करते है।
प्रेम न बड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय ।
राजा-प्रजा जोहि रुचें, शीश देई ले जाय ॥
प्रेम प्याला जो पिये, शीश दक्षिणा देय ।
लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ॥
प्रेम ओर श्रद्धा की झलक प्रकृति को लेकर भी मनुष्य में रही है जिस से भव्य नगरों के निर्माण से लेकर गहरे ज्ञान की संस्थाओं और भंडारो का निर्माण किया और मनुष्य के जीवन में अतिमहत्वपूर्ण बदलाव किये और वह आज भी पर्यटकों व व्यपारियो का केंद्र बने हुवे है हालांकि आज के वैश्विकरण ओर भौतिकवादी जीवन और राज्य ने उन्हें गहरा आघात पहुँचाया है जिसमें तक्षशिला,वाराणसी, काशी, बनारस, रोम, येरुशलम तो कहीं कश्मीर जैसे भौगोलिक क्षेत्र की अनूठी सुंदरता में प्रेम की प्रतिमा दिखति है जो इस तरह बंया की जाती है गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त। हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त" (धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यही हैं)।
"खंड 3"
वैश्विकरण के दौर में प्रेम की परिभाषा में कई बदलाव हुवे जिस में भौतिकवाद को महत्व दिया गया और जीवन के उपयोग में ज्ञान की परिभाषा को भी बदलाव मिला इसका मुख्य कारण व्यपार ओर राजनीतिक जीवन भाग दौड़ भरी जीवन शैली है इन सभी में हो रही प्रतिस्पर्धा के आधार पर व्यक्ति के ज्ञान की सीमा भी व्यपार तक ही रह गई है। आधुनिक जीवन में प्रेम का औचित्य सिर्फ एक परुष व स्त्री के जीवन का अभिन्न अंग की तरह रह गया है जिसमें भी समय की स्थिति के आधार पर उसे भी नये अनचाहे शब्दों के साथ तुलना कर के इस शब्द की परिपक्वता को छीन-भिन्न किया जा रहा हैं इसका मूल उद्देश्य अब सिर्फ भौतिकवादी जीवन की तरह रह गया है जिसमें गहरे आघात और आत्महत्या जैसे अभिशाप देखने और सुनने को मिलते है।
भगवान और धर्म की परिभाषा में गहरे प्रभाव पड़े जिसके बदलाव में राजनीतिक उठा-पटक का हिस्सा रहा है इसको कम करने के लिए कहि श्रेष्ठ व्यक्तियों ने योगदान ओर नियमों को बनाया है ओर अनेक सामाजिक बदलाव के प्रयास किये गए और जनता में बंधुता, प्रेम,सद्भावना, ज्ञान का सहयोग किया गया उनमें महात्मा गाँधी,राजाराम मोहनराय, ज्योतिबाफुले,भिमराव अम्बेडकर, जवाहरलाल नेहरू और इन सभी की बदौलत आज भारत के संविधान ने जीवन का अधिकार गरीमा,भाईचारा,समानता, स्वतंत्रता, एकता,अखंडता इत्यादि दिया है। इतने प्रयासों के बावजूद भी आज प्रेम के शब्द में ज्ञान के आभाव की कमी को अन्य रूपों में देखा जाता है जिसमे भावना को सिर्फ एक चर्म खुशी या जीवन की विलासिता के रूप में उपयोग करते हैं जिससे मनुष्य व प्राणी जगत के साथ प्रकृति भी दुष्प्रभावो का शिकार होती जा रही है इन कारणों से बढ़ रही जलवायु परिवर्तन,पर्यावरण प्रदूषण, मनुष्यों में बढ़ता तनाव, बीमारियों की इकाई, जिवनप्रत्यासा में कमी, आदि।
परन्तु इन सभी के बीच में आज का कोई साधन हमारे जीवन को जोड़े हुवे है तो सिर्फ प्रेम का साधन है जिसमें आज हम भगवान की आस्था या योग व शिक्षा
तथा व्यवहारिक सम्बंद ओर संस्कृति व प्रकृति का सुंदर स्वरूप मान सकते हैं ।
Nice
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